आजकल की नयी पीढ़ी के समाज में जो सबसे बड़ी चुनौती है, वह है, अपनेपन की भावना कम होना, और पारिवारिक संस्कारों का घटना| एक परिवार में भी आपस में कोई अपनापन नहीं रह गया है| इसके परिणामस्वरूप, हमें बहुत सी सामाजिक बुराईयों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे हिंसा, तनाव, तनाव से जुडी बीमारियाँ और अवसाद|
अभी हाल ही में, जब मैं जापान में था, मुझे पता चला, कि जापान में हर साल ३०,००० युवा आत्महत्या करते हैं! ये आंकड़े चौकानें वाले हैं! एक ऐसा देश, जो हर तरह से समृद्ध है, जहाँ की GDP भी पर्याप्त है, और प्रत्येक के पास भरपूर खाने को है, और आराम से जीवन यापन करने को है, ऐसे देश में भी हर साल ३०,००० युवा आत्महत्या कर रहें हैं! यह खतरे की निशानी है!
इसका क्या कारण है? क्या वजह है? हम इस परिस्थिति को कैसे बदल सकते हैं? हमें क्या करना होगा? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जो हमारे सिर पर मंडरा रहें हैं, और इन्हें मंडराना भी चाहिये| हम मनुष्य हैं, हमें एक दूसरे से लगाव होना चाहिये, और हमें सुरक्षित महसूस करना चाहिये, कि अगर हमें कल कोई परेशानी होती है, तो इतने सारे हाथ आज हमारी मदद को आगे आ जायेंगे|
एक बार यदि हमारी मानसिकता में यह बदलाव आ जाए, (जो कि पहले था ही), तब परिस्थिति को बदलते देर नहीं लगेगी|
अगर आप पूर्वी यूरोप के देशों में देखें, कि साम्यवादी (communist) युग में लोगों में आपस में एक समुदाय की भवना थी| उनके पास भले ही खाने के लिए भोजन कम था, या जिंदा रहने के लिए पर्याप्त साधन नहीं थे, लेकिन फिर भी अपनेपं की भावना थी| लोग एक दूसरे की सहायता करते थे|
एक प्रतियोगिता-मुलक व्यापारी दुनिया में, ये मूल्य घट रहें हैं, हमें वापस इन मूल्यों को स्थापित करना है|हम कह सकते हैं, कि वे समाप्त हो चुके हैं, और हमें वापस उस अपनेपन की भावना को जिंदा करना है|
यहाँ तक कि, एक कंपनी के अंदर भी कितने लोग एक दूसरे से लगाव महसूस करते हैं? या हम केवल मशीनों की तरह काम करने आते हैं, और वापस चले जाते हैं, एक दूसरे से कोई भी लगाव महसूस करे बिना?
आध्यात्मिकता इस खालीपन को भर सकती है, अपनेपन और लगाव की इस श्रंखला में जो भाग गुम हो गया है, आध्यात्मिकता ही वह भाग है| यह उस जोश, अपनेपन, आशा और विश्वास को वापस जगा सकती है, जिससे हम आज की चुनौतियों का सामना कर सकते हैं| (श्री श्री रविशंकर )
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